Alankar Kise Kehte Hai और अलंकार की परिभाषा व भेद एवं उदाहरण क्या है तथा कितने प्रकार के होते है जाने हिंदी में
जब भी हम हिंदी भाषा(Hindi Language) की बात करते हैं तो उसके साथ ही साथ हिंदी व्याकरण (Hindi Grammar)का भी उल्लेख किया जाता है क्योंकि आपने हमेशा ही देखा होगा की हिंदी पद में अलंकार(Alankar) का उपयोग बहुत बार किया जाता रहा है ऐसे में आज हम आपको अलंकार क्या है(Alankar kya hai) तथा उसकी परिभाषा भेद सभी चीजों की जानकारी महिया कराएंगे हिंदी भाषा का ज्ञान हमेशा सही परीक्षार्थियों के लिए बहुत ज्यादा महत्व वाला माना जाता रहा है क्योंकि जितने भी प्रतियोगी परीक्षा होती हैं उनमें हिंदी का एक अलग ही महत्व है ऐसे में परीक्षार्थी हिंदी विषय के अलंकार से संबंधित पूछे जाने वाले सभी प्रश्नों को अच्छी तरह से पढ़कर ही अपना ज्ञान बढ़ाते हैं तो आइए हम आपको निम्नलिखित Alankar से संबंधित सभी जानकारियां देते हैं।
Alankar Kise Kehte Hai?
जैसा कि हम जानते हैं अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है जो कि अलं+कार होता है अलं का अर्थ भूषण या सजावट तथा कार का अर्थ करने वाला होता है अर्थात जो अलंकृति अघोषित करें वह अलंकार(Alankar) है यदि अलंकार के शाब्दिक अर्थ की बात की जाए तो उसका माने आभूषण होता है जिस प्रकार आभूषण शरीर की शोभा बढ़ाता है ठीक उसी प्रकार अलंकार के प्रयोग से काम पर में चमत्कार सुंदर और आकर्षण उत्पन्न हो जाता है और यही कारण है कि जितने भी कभी होते हैं वह अपने पद में ज्यादा से ज्यादा Alankar शब्द का प्रयोग करते रहते हैं।
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Alankar की परिभाषा
अलंकार(Alankar) शब्द की परिभाषा की बात की जाए तो बहुत से रचयिता ने इसकी परिभाषा को एडिट किया है जिनमें से निम्नलिखित हम कुछ मुख्य लेखक तथा हिंदी साहित्य के ज्ञानी के अनुसार अलंकार की परिभाषा दर्शाने जा रहे हैं।
सुमित्रानंदन पंत के अनुसार
“अलंकार केवल वाणी की सजावट के लिए ही नहीं बल्कि वे भाव की अभिव्यक्ति की विशेष द्वार मानी जाती है”।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार
“जब भी भावों का उत्कर्ष दिखाना होता है तथा वस्तुओं के रूप गुण क्रिया का अधिक से अधिक तीर अनुभव कराना होता है तो उस समय जो भी सहायक के तौर पर युक्ति का प्रयोग किया जाता है वह अलंकार होता है”।
अलंकार के भेद
वैसे तो हमने सामान्य हिंदी में बहुत सारे अलंकार(Alankar)के बारे में पढ़ा होगा परंतु यदि मुख्यता अलंकार की बात किया जाए तो उसके दो भेद होते हैं जो कि हम आपको निम्नलिखित बताने जा रहे हैं।
1.शब्दालंकार
2. अर्थालंकार
1.शब्दालंकार
जब भी काव्य एवं पद में शब्दों के प्रयोगों के द्वारा जो चमत्कार अथवा सौंदर्य प्राप्त होता है उसे हम शब्दालंकार कहते हैं इसके मुख्यतः तीन भेद होते हैं जिसे हम बारी बारी से आप को दर्शाने जा रहे हैं।
अनुप्रास अलंकार
जब एक ही व्यंजन वर्ण की अवधि बार-बार तथा एक निश्चित क्रम में होती है उसे अनुप्रास अलंकार(Anupras Alankar) कहते हैं।
उदाहरण–”मुदित महिपति मंदिर आए,सेवक सचिव सुमंत बुलाए”
अनुप्रास अलंकार के भेद
अनुप्रास अलंकार के भेद पांच भेद होते हैं जो कि हम आपको निम्नलिखित बताने जा रहे हैं।
छेकानुप्रास-जब एक वर्ण की आवृत्ति एक ही बार होती है अर्थात एक वर्ण केवल दो बार आता है छेकानुप्रास अलंकार कहलाता है।
उदाहरण: हरिपद कोमल कमल से।
वृत्यानुप्रास-जब एक वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है तो उससे वृत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं।
उदाहरण: मोर मुकुट मकरा कृत कुंडल।
श्रुत्यानुप्रास-जब कंठ, तालु आदि किसी एक ही स्थान से उच्चारित होने वाले वर्णों की आवृत्ति होती है श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहलाता है।
उदाहरण: कहीं पद्माकर सुगंध सर सर्वे सूची बिधूरी बिराजे बार हिरण के हार पर।
लाटानुप्रास-जब एक ही अर्थ वाले शब्दों के अवधि हो परंतु अन्य करने पर उनका अर्थ दिन हो जाए तो उसे लाटानुप्रास अलंकार कहते हैं।
उदाहरण: पूत कपूत में क्यों धन संचय पूत सपूत तो क्यों धन संचय।
अंत्यानुप्रास-जब छंद के अंत में स्वर या व्यंजन के आवती हो तथा समान बढ़ाने से तुक मिलती हो अंत्यानुप्रास अलंकार कहलाता है।
उदाहरण: मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
यमक अलंकार
जब किसी एक शब्द की आवर्ती एक से अधिक बार हो पर उन शब्दों के अर्थ भिन्न-भिन्न हो तो उसे यमक अलंकार(Yamak Alankar) कहते हैं।
उदाहरण–”माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर कर का मनका डार दे मन का मनका फेर।
श्लेष अलंकार
जब एक शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो लेकिन उसके अर्थ एक से अधिक निकलते हो वहां श्लेष अलंकार(Shlesh Alankar) होता है।
उदाहरण–”जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गई सोए बारे उजियार और लगे बढ़े अंधेरो होय”
2. अर्थालंकार
जब काम में अर्थ की विशेषता के कारण सौंदर्य या चमत्कार उत्पन्न होता है तो उसे हम अर्थालंकार(Arthalankar) कहते हैं।
अर्थालंकार के भेद
यदि हम अर्थालंकार के भेद की बात करें तो या मुख्यता 5 प्रकार के होते हैं जो कि ज्यादातर इस्तेमाल में लाए जाते हैं इनके बारे में हम निम्नलिखित आपको बताने जा रहे हैं।
रूपक अलंकार
रूप का अर्थ होता है एकता रूपक अलंकार(Rupak Alankar) में पोरसा में होने के कारण प्रस्तुत में प्रस्तुत का आरोप कर आ भेद की स्थिति को स्पष्ट किया जाता है इस प्रकार जहां उपमेय और उपमान के अत्यधिक समानता को प्रकट करने के लिए उपमेय में उपमान का हरूप होता है वहां रूपक अलंकार उपस्थित होता है।
उदाहरण: चरण कमल बंदों हरि राइ
उत्प्रेक्षा अलंकार
उपेक्षा का अर्थ होता है किसी वस्तु के संभावित रूप की उपेक्षा करना उप में अर्थात प्रस्तुत में उपमान अर्थात प्रस्तुत की संभावना को उत्प्रेक्षा अलंकार(Utpreksha Alankar) कहते हैं उत्प्रेक्षा अलंकार में मानव जानू जानू मनु जो इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण: “सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात मन्हु नीलमणि सेल पर आत्पु परयो प्रभात”
भ्रांतिमान अलंकार
जब उप में को भ्रम के कारण उपमान समझ लिया जाता है तब वहां भ्रांतिमान अलंकार(Bhrantiman Alankar) का इस्तेमाल होता है दूसरे शब्दों में यदि कहें तो इस अलंकार में उप में में उपमान का धोखा हो जाता है।
उदाहरण: *नाक का मोती अधर की कांति से बीज, दाड़िम का समझ कर भ्रांति से, देख उसको ही हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शूक यह कौन है?”
संदेह अलंकार
जब किसी वस्तु में उसी के सदृश अन्य वस्तुओं का संदेह हो और सदस्यता के कारण अनिश्चित की मनोदशा हो तब वहां संदेह अलंकार(Sandeh Alankar) होता है।
उदाहरण: “सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है सारी ही की नारी है कि नारी ही कि सारी है”
उपमा अलंकार
जब काम में समान धर्म के आधार पर एक वस्तु की समानता अथवा तुलना अन्य वस्तु से की जाए तब वहां उपमा अलंकार(Upma Alankar)होता है, जिसकी उपमा दी जाती है उसे उसमें तथा जिसके द्वारा उपमा अर्थात तुलना की जाए उसे उपमान कहते हैं उसमें और उपमान की समानता प्रदर्शित करने के लिए सादृश्यवाचक शब्द प्रयोग किए जाते हैं।
उदाहरण: मुख्य मयंक सम मंजू मनोहर
- उपमेय
- उपमान
- वाचक शब्द
- साधारण धर्म
उपमेय(Upmey)
अप में का सीधा अर्थ होता है उपमा देने के योग स्पष्ट तौर पर कह दो किसी भी वस्तु का सीधे तौर पर यदि तुलना की जा रही है तो उसे उपमेय कहते हैं।
उपमान(Upman)
जब भी किसी अपने की तुलना किसी दूसरी चीज से दी जाती है तो उसे हम उपमान कहते हैं यानी किसी पहली वस्तु का संबंध किसी दूसरी वस्तु के साथ समानता प्रकट करती है तो वहां उपमान होता है।
वाचक शब्द(Vachak Shabd)
जब भी हम उठ में और उपमान शब्दों के बीच समानता प्रकट करते हैं तथा जिन शब्दों के द्वारा हम यह समानता दिखाते हैं उससे हम वाचक शब्द कहते हैं।
साधारण धर्म(Sadharan Dharm)
जब भी हम किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के बीच पूर्ण रूप से समानता दिखाने का प्रयास करते हैं तथा उन सब माताओं को हम प्रकट भी कर लेते हैं जो कि वर्तमान समय में दोनों में मौजूद होती हैं तो हम ऐसे में जो गुण अथवा धर्म का उपयोग किया जाता है वह साधारण धर्म कहलाता है।