Glacier Kise Kehte Hai और यह कैसे बनते है एवं ग्लेशियर से मानवीय जीवन पर कैसे असर पड़ता है व यह कहा पाए जाते है जाने सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में
आज हम बात करेंगे ग्लेशियर के बारे में क्योंकि ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिन्हें ग्लेशियर के बारे में नहीं पता है। सबसे पहले हम आपको बताना चाहेंगे कि ग्लेशियर को हिमनद (Rivers Of Ice ) के नाम से भी जाना जाता है। पहाड़ी इलाकों पर पाई जाने वाली गतिशील बर्फ की परत को ही ग्लेशियर कहा जाता है। जिसका पानी ठंड के कारण जम जाता है। तो आइए आज हम आपको आपने इस पोस्ट के माध्यम से इससे संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियां जैसे Glacier क्या है? कैसे बनता है, आदि प्रदान करेंगे। यदि आप भी इसके बारे में जानना चाहते हैं तो हमारी इस पोस्ट को अंत तक जरूर करें।
Glacier Kise Kehte Hai
पर्वतीय इलाकों में जैसे-जैसे हम ऊंचाई पर बढ़ते हैं वैसे-वैसे टेंपरेचर में कमी आती रहती है। जिसकी वजह से हवा में नमी आती है और जब यह हवा पर्वतों से टकराती है तो बर्फ बन जाती है। जिसे ग्लेशियर कहा जाता है। कई साल तक यह बर्फ पर्वतों पर जमा होती रहती है जिसके साथ साथ खतरा भी बढ़ता रहता है। लेकिन क्या आपको पता है कि जब तक यह बर्फ धीरे-धीरे पर पिघलती है तब तक तो ठीक है लेकिन जब यह बर्फ अचानक से टूट जाती हैं तो अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को नष्ट कर देती है। Glacier टूटने के कारण नदियों का जलस्तर बढ़ने से बाढ़ का खतरा बहुत बढ़ जाता है। पहाड़ी इलाका होने के कारण इसका बहाव बहुत तेज होता है।
भारत में लद्दाख, श्रीनगर, हिमाचल जो दीर्घ हिमालय स्थित है, वहां बड़े-बड़े आकार के Glacier पाए जाते है।मौसम बदलने पर यह बर्फ पिघलती है जो नदियों में पानी का मुख्य स्त्रोत होता है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले ग्लेशियर दो प्रकार के होते हैं। जिसमे पहले अल्पाइन या घाटी में पाए जाने वाले ग्लेशियर होता है। दुसरे में पर्वतीय ग्लेशियर, जो पर्वतों की चोटी पर पायी जाती है।
ग्लेशियर कैसे बनते हैं
- जिन इलाकों में ज्यादा ठंड पड़ती है उन इलाकों में हर साल बर्फ जमा होती रहती है। सर्दियों में बर्फबारी होने पर पहले से जमा हुई बर्फ जमने लगती है। जिससे उसका घनत्व और भी बढ़ता जाता है। जब छोटे छोटे बर्फ के टुकड़े ग्लेशियर में बदलने लगते हैं। वही ग्लेशियर नई बर्फबारी होने से नीचे दबने लगते हैं और कठोर हो जाते हैं, इस प्रक्रिया को फर्न कहते हैं। ऐसा होते होते यह ठोस बर्फ की बहुत विशाल मात्रा में जमा होने लगती है। बर्फबारी अधिक होने के कारण फर्न पर बिना दबाव पड़े तापमान के ही पिघलने लगती है और हिमनद का रूप लेकर घाटियों में बहने लगती है। यह तब तक विकराल रूप नहीं लेती है जब तक यह हिमस्खलन का रूप नहीं बदलती।
- हिमस्खलन में बहुत ज्यादा बर्फ जब पहाड़ों से फिसल कर घाटी में गिरने लगती है तभी एक विकराल रूप में आ जाती है और रास्ते में आने वाले हर चीज को तबाह कर देती है। जब यह ग्लेशियर पानी के साथ मिलता है तो और भी ज्यादा खतरनाक बन देता है। पानी के साथ मिलकर यह टाइटवाटर Glacier बन जाता है। पानी में तैरते बर्फ के टुकड़ों को केल्विन कहा जाता है जिससे पानी का बहाव बढ़ जाता है।
ग्लेशियर से मानवीय जीवन पर असर
- ज्यादा मात्रा में Glacier पिघलने से आसपास के इलाकों में बाढ़ का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
- जिसके कारण खेती एवं स्थानीय निवास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ सकता है। जिसके मानव जीवन पर संकट भी आ सकता है।
- यदि कहीं गर्म इलाके के पास कहीं ग्लेशियर पिघलता है तो वहां के लोगों को उसका लाभ मिलता है।
- बहुत ज्यादा ग्लेशियर पिघलने पर पूरे विश्व के मौसम पर इसका असर पड़ता है।
- कई देशो ने करार के रूप में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को नियंत्रण करने का फैसला लिया है जिससे पर्यावरण में सुधार लाया जा सके।
- ग्लेशियर पृथ्वी पर पानी का सबसे बड़ा सोर्स हैं। इनकी उपयोगिता नदियों के स्रोत के तौर पर होती है।
Glacier से खतरा
ग्लेशियर टूटने या पिघलने से जो दुर्घटनाएं होती हैं वह बड़ी आबादी पर असर डालती हैं। यह बर्फीली चोटिया बहुत खतरनाक होती हैं जो कभी भी गिर सकती हैं। ग्लेशियर हमेशा एक जगह स्थिर होते हैं और धीरे-धीरे नीचे की ओर सरकते रहते हैं। Glacier में बड़ी-बड़ी दरारें होती हैं जो ऊपर से बस की एक पतली परत से ढक जाती है। इन चट्टानों के पास जाने पर वजन पढ़ते ही बर्फ की पतली परत टूट जाती है, जिससे खतरा बढ़ जाता है। यदि इस तरह जब भूकंप या कंपन होता है तब भी इन चोटिया पर जमी बर्फ सरक कर नीचे आ जाती है जिसे अवलॉन्च कहते हैं। कई बार तो तेज ध्वनि और विस्फोट के कारण भी एवलॉन्च आते हैं।
किस कारण पिघल रहे हैं अंटार्कटिका के ग्लेशियर
अंटार्कटिका के ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिघलते जा रहे हैं।आपकी जानकारी के लिए हम बताना चाहेंगे कि पश्चिम अंटार्कटिका में एक ऐसा ग्लेशियर भी है जिसकी पर बहुत तेजी से पिघल रही है जिसे टाइट्स ग्लेशियर कहते हैं। इस ग्लेशियर का साइज ब्रिटेन के क्षेत्रफल से भी बड़ा है। इस ग्लेशियर से लगभग साल भर में 35 अरब तक पानी पिघल कर समुद्र में गिर रहा है। जिसके कारण समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है। यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट साइंस पैनल ने एक शोध के बाद बताया कि साल 2100 तक समुद्र का जलस्तर 26 सेंटीमीटर से 1.1 मीटर तक बढ़ सकता है। जिसकी वजह से समुद्र के किनारे पर बसे देश शहर और गांव के डूबने का खतरा बढ़ रहा है।
ग्लेशियर को पिघलने से रोकने के लिए क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ता देश
Glacier के पिघलने का कारण दुनिया में कार्बन डाई ऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों के काफी ज्यादा मात्रा में उत्सर्जन है। कल, कारखाने, व्हीकल, एसी इत्यादि इन गैसों का उत्सर्जन करते हैं। जिससे धरती का तापमान बढ़ता है तो ग्लेशियर पिघलने लगते हैं। कार्बन समेत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए ही देश अब क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ रहे हैं। इनमें सोलर एनर्जी, विंड टरबाइन, एटॉमिक एनर्जी इत्यादि प्रमुख हैं। ग्लेशियर का अपनी गति से पिघलना एक सामान्य प्रक्रिया है जिसे दुनिया को पानी की आपूर्ति होती है लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण इसका तेजी से पिघल नाही आने वाले समय में बहुत बड़ी समस्या को पैदा कर देता है। जैसे बाढ़ का आना, हिमस्खलन का होना जैसी प्राकृतिक आपदाएं।