नाटो क्या है और इसकी फुल फॉर्म क्या होती है एवं NATO समूह में सदस्यों की संख्या, Country List, जुड़े देश कौन कौन से है जाने हिंदी में
जैसा कि आपको पता है की विश्व ने जो सबसे बड़ी त्राहि झेली थी वह द्वितीय युद्ध के बाद ही सामने आई थी आपको पता होगा कि द्वितीय विश्व के दौरान करोड़ों लोगों ने अपनी जान गवाई थी तथा भुखमरी से भी बहुत ही जाने गई थी लोगों में रहन-सहन में काफी बदलाव आया था कई कई देश तो उन तबाहीयों में पूरी तरह उजड़ गए थे जिसका उदाहरण आपको जापान के शहर हिरोशिमा और नागासाकी हमेशा से ही बताया जाता रहा है जहां पर परमाणु हमले कराए गए थे द्वितीय युद्ध के बाद एक बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब से ऐसी कोई भी घटना ना घटे जिससे कि आम जनों को तबाही का सामना करना पड़े
इसके लिए उस समय लगभग 12 देशों ने मिलकर एक ऐसा संगठन बनाया जिसके द्वारा उस संगठन के अंतर्गत आने वाले सभी देशों ने पूर्ण रूप से युद्ध की भूमिका को खत्म करने के लिए अपनी अपनी सैन्य सेना का गठन करके एक समूह बनाया जिसे NATO (North Atlantic Treaty Organization) के नाम से जाना जाता है।
नाटो क्या है- What Is NATO In Hindi
द्वितीय युद्ध के समय जो सबसे बड़ी महाशक्ति जानी जाती थी वह सोवियत संघ को ही माना जाता था जिसमें बहुत से देशों का समूह होता था जिसका मुख्य देश रूस था परंतु द्वितीय युद्ध के बाद अप्रैल 1949 को नाटो समूह की स्थापना की गई जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से यूनाइटेड स्टेट्स ब्रिटेन बेल्जियम आदि सम्मिलित हुए। जिसमें सभी देश अपनी अपनी सेनाओं को उसमें भेजती हैं तथा उसमें एक प्रकार का अंतरराष्ट्रीय ट्रेनिंग भी कराई जाती है जिसके द्वारा कहीं पर भी युद्ध की हालात में नाटो समूह के सैनिक मुस्तैदी से लग जाते हैं तथा शांति बनाए रखने की मुहिम को आगे बढ़ाते हैं तथा युद्ध के स्तर को कम करते हैं। नाटो संगठन का पूरा नाम North Atlantic Treaty Organization है जिसे हिंदी में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन के नाम से जाना जाता है।
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नाटो का मुख्यालय व महासचिव
यदि नाटो समूह के मुख्यालय अथवा हेड क्वार्टर की बात की जाए तो यह बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स मैं स्थापित किया गया है तथा इसके महासचिव Jens Stoltenberg है जोकि नॉर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री रह चुके हैं इनकी काबिलियत और शांति व्यवस्था को बरकरार रखने की तकनीक को देखते हुए इनके कार्यकाल को आगे बढ़ाने की सिफारिश की गई थी जिसे मानकर अब इनका कार्यकाल सितंबर 2022 तक सीमित कर दिया गया है जो कि पहले 2018 में समाप्त हो रहा था, इसी के साथ बताते चलें कि नाटो के महासचिव का कार्यकाल 4 साल का निर्धारित किया गया है।
NATO समूह में सदस्यों की संख्या
जैसा कि आपको पहले से ही पता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ ने अपना अधिकार पूरे विश्व पर स्थापित करने की कोशिश शुरू कर दी थी तथा उसी समय अमेरिका जैसी महाशक्ति ने भी अपने आप को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी इन्हीं दोनों की अग्रिम शक्तियों को देखते हुए यूरोपीय देशों में एक हलचल सी मच गई तथा उन्होंने एक संधि करने के लिए बैठक की जिसमें यह सुझाव दिया गया कि यदि किसी भी देश में कोई आक्रमण या युद्ध की भूमिका उत्पन्न होती है तो अन्य देश उसके साथ खड़े होकर उसे आर्थिक सामाजिक एवं सैन्य सहायता पहुंचाने का कार्य करेंगे इसी को देखते हुए अमेरिका ने पहल करके यूरोपीय देशों के साथ एक संधि की तथा एक नए संगठन का निर्माण किया जिसमें अमेरिका के साथ-साथ 11 अन्य देशों ने हस्ताक्षर करके नाटो(NATO) समूह की स्थापना में अपना योगदान दिया।
वर्तमान में नाटो समूह में 30 सदस्य है जो कि निम्नलिखित बताए जा रहे हैं:
- यूनाइटेड स्टेट्स
- यूनाइटेड किंगडम
- तुर्की
- स्पेन
- अल्बानिया
- बेल्जियम
- बुल्गारिया
- कनाडा
- क्रोएशिया
- चेक रिपब्लिक
- डेनमार्क
- एस्टोनिया
- फ्रांस
- जर्मनी
- ग्रीस
- हंगरी
- आइसलैंड
- इटली
- लातविया
- लिथुआनिया
- लक्जमबर्ग
- मोंटेनेग्रो
- नीदरलैंड
- नॉर्थ मेसेडोनिया
- नॉर्वे
- पोलैंड
- पुर्तगाल
- रोमानिया
- स्लोवाकिया
- स्लोवेनिया
NATO समूह की स्थापना कैसे हुए?
जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो उसके बाद पूरे विश्व पर बहुत ज्यादा आर्थिक मंदी देखने को मिली लगभग सभी देशों में खासकर के यूरोपीय देशों में आर्थिक जीवन में बहुत ज्यादा बदलाव देखने को मिला जिससे रहन-सहन एवं समाजिक दूरियां बहुत अधिक बढ़ गई थी इन्हीं सब का फायदा उठाने के लिए सोवियत संघ ने चाहा के भूमध्य सागर पर कब्जा करके उससे लगे सभी देशों पर अपना अधिकार प्राप्त करके साम्यवाद प्रथा स्थापित की जाए तथा उसके साथ-साथ सोवियत संघ का यह सोचना था कि तुर्की एवं ग्रीस जैसे देशों में अपना शासन स्थापित करके उन्हें कमाई का जरिया बनाया जा सके जिसका अमरीका ने पुनल्लूर तरीके से विरोध किया था उस समय अमेरिका में भी बहुत से राजनीतिक भूचाल मच गया था क्योंकि निवर्तमान राष्ट्रपति Franklin Delaney Ruzvelt का अचानक निधन हो जाना यह बहुत ज्यादा समस्या का विषय हो चुका था।
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परंतु वहां के राजनैतिक सलाहकारों की सूझबूझ से वहां पर Harry Truman को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। जिसकी बदौलत उन्होंने सोवियत संघ की भूमध्य सागर पर तथा उसके साथ साथ ग्रीस व तुर्की पर विस्तार करने की सोच को सभी के सामने उजागर कर दिया तथा यूरोपीय देशों के साथ मिलकर एक संधि की तथा उस संधि के अंतर्गत नाटो समूह का गठन किया गया इसीलिए उक्त संधि को ट्रूमैन का सिद्धांत के नाम से भी जानते हैं।
नाटो समूह को स्थापित करने का उद्देश
जैसा कि आपको बताया गया कि यदि नाटो समूह का स्थापना ना की जाती तो पूरे विश्व पर सोवियत संघ अपना अधिकार स्थापित कर चुका होता परंतु उसके चार को अमेरिका ने पहले ही भाग लिया तथा यूरोपीय देशों के साथ मिलकर इस विश्व के सबसे बड़े समूह की स्थापना की निम्नलिखित उसके कुछ उद्देश्य बताए जा रहे हैं।
- उन दिनों यूरोपीय देश आपस में एक दूसरे से अलग-थलग रह रहे थे जिसे एक साथ लाकर खड़ा करना इसका मुख्य उद्देश्य था।
- यूरोपीय देशों को आर्थिक एवं सैन्य सहायता प्रदान करने के लिए इस समूह का गठन किया गया था तथा उसके साथ-साथ आक्रमण के समय यदि युद्ध की भूमिका उत्पन्न होती है तो नाटो समूह के अंतर्गत आने वाले देश के साथ मिलकर शांति व्यवस्था को बनाए रखने का भी मुख्य उद्देश था।
- सोवियत संघ के भूमध्य सागर पर कब्जा करना तथा उसके विस्तार को रोकने के लिए सभी देशों ने मिलकर इस समूह की स्थापना की थी जिसके द्वारा सोवियत संघ को एक सीमित दायरे तक रखा जा सके।
- विश्व में आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़ रहे देशों को आगे बढ़ाना तथा उन्हें युद्ध की स्थितियों से निपटने के लिए सैन्य सहायता प्रदान करने का मुख्य उद्देश्य था।
NATO समूह के गठन से विश्व में प्रभाव
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब नाटो समूह का गठन किया गया तो उसमें सिर्फ 12 देशों ने ही भाग लिया था परंतु इस संगठन के प्रभाव एवं नीतियों से प्रभावित होकर धीरे-धीरे अन्य देशों ने भी इसमें हिस्सा लिया तथा सम्मिलित हो गए वर्तमान में यह 30 देशों के सदस्यों का एक समूह है जो कि संपूर्ण विश्व पर सबसे बड़े संगठन का समूह माना जाता है ना तो समूह के गठन से विश्व में बहुत से ऐसे प्रभाव देखने को मिले जोकि उन समय असंभव से लग रहे थे निम्नलिखित उन प्रभाव को हम बता रहे हैं
- सबसे पहले तो नाटो समूह के स्थापित होने से सोवियत संघ कई टुकड़ों में बट गया तथा उसके विस्तार में एक रुकावट देखने को मिली जो कि अन्य देशों के लिए काफी अच्छा माना जाने लगा।
- अमेरिका जैसी महाशक्तियों में अलगाववादी की समाप्ति हुई तथा विदेश नीतियों में कुछ बदलाव भी देखने को मिले।
- पश्चिमी यूरोपीय देशों ने अंतरराष्ट्रीय सेन संगठन में अपनी अपनी सेना भेज कर उसकी अधीनता में नाटो समूह के अंतर्गत कार्य करने की इच्छा पर हस्ताक्षर किया तथा साथ मिलकर कार्य किया जोकि अब तक कभी नहीं हुआ था।
- विश्व में साम्यवाद व्यवस्था को धीरे-धीरे समाप्त किया गया जिसका सोवियत संघ ने विरोध भी किया नाटो संगठन ने शीत युद्ध पर ज्यादा तवज्जो दिया परंतु सोवियत संघ ने अपनी वर्साय संधि के तहत बहुत से पश्चिमी देशों को अपने में मिलाने की नाकाम कोशिश भी की परंतु वह सफल नहीं हो सका।