दल बदल कानून क्या है | What is Anti-Defection Law महत्व, कारण व पूरी जानकारी

Anti-Defection Law Kya Hai और दल बदल कानून का नियम क्या है एवं इसके महत्व, कारण व पूरी जानकारी हिंदी में

किसी भी देश को चलाने के लिए राजनैतिक पार्टियों का होना बहुत ज्यादा अनिवार्य होता है क्योंकि लोकतांत्रिक देशों में सरकार को जनता के द्वारा चुना जाता है और ऐसे में चुनाव प्रक्रिया करने के बाद ही किसी एक पार्टी को देश की सत्ता सौंपी जाती है ऐसे में बहुत से व्यक्ति विशेष होते है जो विधायक,सांसद, एमएलसी,आदि के पद पर निर्वाचित होते है परंतु बहुत से लोग ऐसे भी होते है की जो चुनाव तो किसी पार्टी से लड़ कर जीत जाते है लेकिन जितने के बाद किसी अन्य राजनैतिक पार्टी में चले जाते है।जिससे पहले वाली पार्टी की संख्या बल में कमी हो जाती है

और बहुत बार तो यह भी देखने को मिला है की कोई कोई पार्टी एक सीट से सरकार बना नही पाती तो ऐसे ही लोगो के लिए दल बदल कानून लाया गया था।अब आप सोच रहे होंगे कि ये दल बदल कानून(Anti Defection Law) क्या है तो इसके बारे में हम आपको विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे।

Anti-Defection Law Kya Hai?

हमारे देश में Anti-Defection Law एक ऐसा संवैधानिक कानून है जो कि किसी भी पार्टी के जनप्रतिनिधियों के दल बदलने पर रोक लगाने के कार्य करता है इस कानून की शुरुआत कांग्रेस सरकार के समय 1985 में की गई थी जिसमें संविधान के अंतर्गत 52वा संशोधन करके दसवीं अनुसूची को जोड़ने का कार्य किया गया था जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के द्वारा की गई थी और उसी समय इस कानून को पारित किया गया था यह कानून खासतौर से किसी भी पार्टी के सांसद,विधायक एमएलसी आदि को अपनी पार्टी छोड़कर दूसरे पार्टी में जाकर पद पर बने रहने को बर्खास्त करता है।

Anti-Defection Law
Anti-Defection Law

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दल बदल कानून बनाने का उद्देश्य

देश में Anti-Defection Law इस लिए बनाया गया क्योंकि बहुत से ऐसे विधायक,सांसद थे जो वर्षों से सत्ता में रहे और अपने पद का बखूबी से इस्तेमाल भी किया लेकिन जैसे ही उनकी पार्टी की सरकार गई आपनी पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में चले गए जो दोबारा से सत्ता में आ गई इस तरह से उन्हें सत्ता का ही नशा चढ़ चुका था और वह विपक्ष में नहीं रहना चाहते थे ऐसे में पार्टियों के बीच भरोसे की स्थिति खत्म हो रही थी और पुनः एक बेहतर राजनीति देश में उजागर करने की जरूरत है

इसी क्रम में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी के द्वारा 1985 में दल बदल कानून को पारित करके संविधान में संशोधन किया गया और इस कानून का निर्माण किया गया जिससे अब कोई भी व्यक्ति यदि अपनी पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में जाता है तो उसके सदस्यता रद्द कर दी जाएगी और वह अपने पद से भी हाथ धो बैठेगा।

Anti-Defection Law बनाने का कारण क्या था?

देश में दल बदल कानून को बनाने के पीछे एक काफी ज्यादा रोचक कहानी जुड़ी हुई है जोकि राजनीतिक गलियारों के हमेशा से ही हंसी का पात्र बनी रही है दरअसल बात सन 1967 की है जब हरियाणा के एक विधायक के द्वारा जिनका नाम गया लाल था तीन बार एक ही दिन में पार्टी बदली गई थी और तभी से भारतीय राजनीतिक इतिहास में “आया राम गया राम” जैसे मुहावरे अत्यधिक प्रचलित होगया। इसी राजनीतिक घटना को देखकर ही Anti-Defection Law बनाने की सिफारिश की गई थी जिसके बाद संसद में बिल भी पारित हुआ इसके माध्यम से देश के सभी सांसद विधायक आदि को एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने पर रोक लगाई जा सके और यदि वह ऐसा करते भी हैं तुम्हें उनकी पार्टी से निष्कासित करके उनके पद से भी हटाया जा सकेगा।

दल बदल कानून का नियम क्या है?

निम्नलिखित कुछ Anti-Defection Law के नियम बताए गए हैं जिनके अंतर्गत दल बदल कानून को लागू किया जाता है।

  • यदि कोई भी जनप्रतिनिधि चाहे वह विधायक, सांसद, एमएलसी हो वह अपनी मर्जी से पार्टी को छोड़ता है तो उसके ऊपर Anti-Defection Law के अंतर्गत कार्रवाई की जा सकती है।
  • यदि कोई भी जनप्रतिनिधि अपनी ही राजनीतिक पार्टी के खिलाफ बयानबाजी करता है या फिर पूर्ण रूप से खिलाफ हो जाता है तो भी वह दल बदल कानून के अंतर्गत कार्यवाही के लिए पात्र होगा।
  • यदि कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी के द्वारा बताए गए कैंडिडेट को वोट नहीं करता है या फिर उसके खिलाफ रहता है तो भी वह पार्टी एवं पद से निष्कासित किया जा सकता है।
  • यदि कोई भी जनप्रतिनिधि अपनी राजनीतिक पार्टी के नियम निर्देशों का पालन नहीं करता है तो भी उसके ऊपर कार्रवाई की जा सकती हैं।

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किन मामलों में दल बदल कानून लागू नहीं होता
  • यदि कोई राजनैतिक पार्टी पूरी तरह से अपना विलय किसी अन्य राजनैतिक पार्टी के अंदर कर देती है तो यहाँ पर दल बदल कानून लागू नहीं होता।
  • यदि कोई राजनैतिक पार्टी कर जनप्रतिनिधि अपनी कोई अन्य पार्टी का निर्माण करता है तो यहां पर भी दल बदल कानून लागू नहीं किया जा सकता।
  • यदि किसी पार्टी का विलय पूर्ण रूप से हो गया है परंतु उस राजनैतिक पार्टी के सदस्य विलय को स्वीकार्य नहीं करते तब भी कानून को लागू नहीं किया जा सकता।
  • यदि किसी राजनैतिक पार्टी के दो तिहाई से अधिक सदस्य किसी अन्य राजनैतिक पार्टी में चले जाते है तो भी उनकी सदस्यता रद्द नहीं की जा सकती।
दल बदल कानून में कुछ संशोधन
  • वर्ष 2003 में हुए सविधान संशोधन के अंतर्गत अब एक तिहाई से लेकर दो तिहाई तक के किसी राजनैतिक पार्टी के सदस्य ले अपनी पार्टी छोड़ देने पर उनकी सदस्यता नहीं रद के जाएगी।
  • सविधान के 91वें संशोधन के अंतर्गत यदि कोई सामूहिक तौर पर दल बदल
  • वर्ष 1991 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा संवैधानिक पीठ ने सविधान की 10वीं अनुसूची को वैध दर्शाया।

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